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जाने क्या है कुम्भ विवाह और क्यों किया जाता है कुम्भ विवाह

कुम्भ विवाह से सुखमय दाम्पत्य यदि कन्या की कुंडली में ‘मंगल दोष’, ‘वैधव्य दोष’ या ‘विष योग’ हो तो उपचार है कुंभ विवाह।  जिस कन्या की कुंडली में सप्तम भाव में मंगल पाप ग्रहों से युक्त हो तथा पाप ग्रह सप्तम भाव में स्थित मंगल को देखते हों  वैधव्य कारक अरिष्ट योग, जैसे कि मांगलिक दोष या विषकन्या दोष-इन सभी से दूषित कन्या के सुखी दांपत्य हेतु शास्त्रों में कुंभ विवाह का परामर्श दिया हुआ है। स्थाई दांपत्य जीवन हेतु विष्णु रूप कुंभ से विवाह करा लें।

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यदि वर या वधु कोई एक मांगलिक हैं तो लड़की का विवाह पहले भगवान विष्णु से किया जाना चाहिए। विधि-विधान से जब कन्या का विवाह भगवान श्रीहरि से हो जाता है तब उसकी जन्मपत्रिका के कई गंभीर ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं। इसके बाद उस लड़की का दूसरा विवाह अन्य वर के साथ किया जा सकता है। इससे वर-वधु दोनों का जीवन सुखी और संपन्न होगा। यदि कुंडली में शत्रु राशि का मंगल सप्तम स्थान में हो, सप्तम या अष्टम भाव में नीच का सूर्य हो, सप्तम में सूर्य-चंद्र की युति हो, सप्तम स्थान में नीच का बुध हो, सप्तम भाव में नीच का गुरु हो तो लड़की की कुंभ विवाह ज्योतिष के अनुसार कुंडली में सप्तम भाव विवाह या शादी का कारक भाव है। अत: इस भाव के दूषित होने पर उचित उपचार भी किया जाना चाहिए।